अब निजी अस्पतालों की मनमानी पर सरकार का सीधा नियंत्रण
कोलकाता। ममता सरकार ने राज्य के स्वास्थ्य ढांचे में एक नई क्रांति की नींव रख दी है। मंगलवार को विधानसभा में भारी बहुमत से पारित हुआ 'क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट संशोधन विधेयकÓ अब निजी अस्पतालों की अनियमितताओं, मनमानी फीस और पैकेज व्यवस्था पर सीधा अंकुश लगाएगा। राज्य सरकार का दावा है कि यह विधेयक देश में अपनी तरह का पहला कानून है, जो मरीजों को ताकत देगा और निजी अस्पतालों की व्यवस्था को जवाबदेह बनाएगा।
स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि अब कोई भी मरीज निजी अस्पताल में इलाज के लिए असहाय नहीं रहेगा। मरीजों को यह अधिकार होगा कि वे जान सकें कि कितना खर्च हुआ, किस पैकेज के तहत इलाज हुआ और क्यों अतिरिक्त शुल्क लिया गया। यह कानून आम नागरिकों के स्वास्थ्य अधिकार को कानूनी संरक्षण देगा।
नए विधेयक के दावे के अनुसार अब बिना पैसे के भी निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य साथी कार्ड के ज़रिए इलाज संभव होगा। राज्य की पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को एक केंद्रीकृत, पारदर्शी और डिजिटल रूप में बदला जाएगा। प्रत्येक मरीज का ई-प्रेस्क्रिप्शन, टेस्ट रिपोर्ट और इलाज से जुड़ी जानकारी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगी। वही नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने इस विधेयक में प्रक्रिया की जटिलता, छोटे नर्सिंग होम्स पर बोझ और बिना सलाह निजी क्षेत्र को प्रभावित करने की बात कही थी।
इस पर जवाब देते हुए चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा कि जो लोग निजी अस्पतालों की तरफदारी कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि एक आम मरीज को सबसे ज़्यादा पीड़ा निजी अस्पतालों में होती है। अब सरकार मरीज के साथ खड़ी है। राज्य के 1000 से अधिक निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स को अपनी बिलिंग व्यवस्था, रिकॉर्ड-रखाव और पैकेज सिस्टम में बदलाव लाना होगा। सरकार के पास यह अधिकार होगा कि वह किसी भी अस्पताल का मूल्य निर्धारण, सेवाओं की गुणवत्ता और मरीजों की शिकायतों की निगरानी कर सके।स्वास्थ्य साथी योजना को निजी अस्पतालों में मजबूती से लागू कर पाने का आधार मिलेगा।
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक साहसिक लेकिन चुनौतीपूर्ण है। निजी क्षेत्र के अस्पतालों को तकनीकी और प्रक्रियागत बदलाव लाने होंगे, वहीं सरकार को भी डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और निगरानी प्रणाली को मजबूत करना होगा। क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट संशोधन विधेयक न सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था का कायाकल्प करने वाला कदम है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी ममता बनर्जी सरकार के लिए एक सामाजिक जीत का अवसर बन सकता है। आने वाले महीनों में इस कानून की ज़मीनी प्रभावशीलता यह तय करेगी कि यह कदम महज कानूनी बदलाव था या सचमुच एक 'जन-स्वास्थ्य क्रांतिÓ की शुरुआत है।